इंटरसेक्शनलशरीर बलात्कार के बेबस रंगों को उकेरता एमा क्रेंजर का पावरफुल आर्ट पीस

बलात्कार के बेबस रंगों को उकेरता एमा क्रेंजर का पावरफुल आर्ट पीस

हाल ही में, ट्विटर पर एमा क्रेंजर नाम की एक लड़की ने अपनी बनाई एक पेंटिग की तस्वीर साझा की| मात्र उन्नीस साल की एमा ने अपने कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए यह पेंटिंग बनाई थी|

कलाकार की रचना यदि समय से आगे की सोच पर आधारित हो तब वह भविष्य संवारने में सफल होती है| समाज को नई दिशा देने में सक्षम होती है| और जब वह रचना समय से बेहद पीछे के दृश्य को दिखाए तो यह हमें हमारे इतिहास का बोध कराती है और समाज की जड़ों को मजबूती देती है| इसी तर्ज पर जब रचना अपने वर्तमान पर आधारित हो तब वह समाज में बदलाव का आवाह्न करती है| किसी भी कलाकार की रचना में किसी निश्चित देशकाल और वातावरण की छाप होती है, जो उस रचना-उपयोगिता की दिशा निर्धारित करती है|

समाज में किसी भी तरह का परिवर्तन यूँ ही नहीं आ जाता है| जब लेखन से लेकर कलाकृतियों तक, संगीत से लेकर तस्वीरों तक – यह सभी जब परिवर्तन के लिए किसी निश्चित धारा का अनुसरण करते हैं तब समाज में नए परिवर्तन स्थान लेते है| यूरोप का पुनर्जागरण इस बात का सटीक उदाहरण है| एक कलाकार या लेखक अपने नजरिए से दुनिया को देखता है, समझता है और फिर उसे अपनी कलाकृति व लेखन में बयान करता है| पर उनकी रचनायें बेहतरीन व अनूठी तब कहलाती है जब उनमें अनुभवों व भावों का मिश्रण होता है|

बलात्कार के बेबस रंगों को उकेरता एमा क्रेंजर का पावरफुल आर्ट पीस

बलात्कार के बेबस रंगों को उकेरता एमा क्रेंजर का पावरफुल आर्ट पीस

Image Credit: Emma Krenzer

हाल ही में, ट्विटर पर एमा क्रेंजर नाम की एक लड़की ने अपनी बनाई एक पेंटिग की तस्वीर साझा की| मात्र उन्नीस साल की एमा ने अपने कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए यह पेंटिंग बनाई थी| इस आर्ट पीस में उसने मानव जीवन के हर रिश्ते के चाहे-अनचाहे स्पर्श को अलग-अलग रंगों से बयान किया है, जिनके भाव एक-दूसरे से अलग होते है| फिर चाहे वो माता-पिता का स्नेह हो या दोस्तों के साथ होने का एहसास| ये वही एहसास होते है जो इंसान को इंसान बनाते है, उन्हें जीवन जीने का हौसला का देते है| पर जीवन में कई ऐसे भी अनचाहे स्पर्श होते है जो ज़िन्दगी जीने की वजह को खत्म-सा करने लगते है| इस पेंटिंग के जरिए एमा ने बेबसी के उस एहसास को भी बयान किया है, जब हमारा शरीर कोई अनचाहा स्पर्श महसूस करता है और हम उस शख्स को ‘ना’ कहते हैं इसके बावजूद वह आपको लगातार छूता है| यह एहसास शरीर से ज्यादा हमारे मन में एक ऐसा गहरा घाव बना देता है, जिसके निशान सालों तक हमारी यादों से मिटाए नहीं मिटते है| बेहद मुश्किल है, यौन शोषण के उस वीभत्स एहसास की कल्पना भी कर पाना| लेकिन एमा ने अपनी बनाई इस पेंटिंग के ज़रिए उस अनचाहे स्पर्श को उसके डरवाने एहसास के साथ बखूबी उकेरा है| अच्छे-बुरे स्पर्श वाले इस पावरफुल आर्ट पीस की सोशल मीडिया के ज़रिए सराहना की जा रही है| कम उम्र में इस आर्ट पीस को तैयार करने वाली एमा वाकई काबिल–ए-तारीफ़ है|

‘किसको अच्छा लगता है सर कोई इस तरीके से छुए ‘ज़बरदस्ती’

यह डायलॉग, हाल में आई फिल्म ‘पिंक’ से लिया गया है| यह डायलाग हमें याद दिलाता है उस बेबस लड़की का चेहरा, जिसकी ज़िन्दगी में सबकुछ नार्मल था| वह आत्मनिर्भर थी और अपने शर्तों पर ज़िन्दगी जी रही थी| लेकिन जिस दिन उसने एक मर्द को अपने साथ जोर-ज़बरदस्ती करने पर ‘ना’ कहा तो उसे पितृसत्ता की उस अदालत के कठघरे में खड़ा कर दिया| क्योंकि उसने पितृसत्ता को ‘ना’ कह दिया था जिसे महिलाओं को अपने सामने घुटने टेकते देखने पर शान व ताकत का एहसास होता है, जो भले ही खोखली और झूठी हो|

वाकई यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वर्तमान समय में एक ओर जहां वेश्यावृत्ति का बाज़ार दिन दो गुनी और रात चौगुनी की रफ्तार से बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर बलात्कार और यौन उत्पीड़न की घटनाओं में भी तेज़ी इजाफा हो रहा है| यानी महिलाओं का दमन चारों दिशाओं में ज़ारी है – कभी ‘वेश्या’ के नाम पर तो कभी ‘बलात्कार व यौन उत्पीड़न पीड़िता’ के नाम पर| पितृसत्ता को यह प्रलोभन होता महिलाओं का यह दमन उनकी खोखली व झूठी शान और ताकत के लिए है – जिसे वह महिलाओं के दमन पर स्थापित करता है| लेकिन महिलाओं पर पितृसत्ता की स्थापित रहने की समयावधि महिला निर्धारित करती है, जिस दिन वह इसे ‘ना’ कहना शुरू करती है असल में इस स्थापना की ईंटें एक-एक करके अपने आप धराशाही होने लगती है|

पर अब वह बोल रही है

बलात्कार के बेबस रंगों को उकेरता एमा क्रेंजर का पावरफुल आर्ट पीस

Image Credit: Emma Krenzer

आधुनिक समय में सामाजिक संबंधों से बने मानव समाज में एक और कृतिम समाज प्रभावी ढंग से अपनी पैठ जमा रहा है, यानी सोशल मीडिया| जिसका संचालन मानव-समाज के द्वारा हो रहा है| सोशल मीडिया के माध्यम से सभी अपने अनुभव, विचार, समस्याएं एवं सुधार; सरहदों की बंदिशों से परे एक-दूसरे से साझा करते हैं| अब तो आधी दुनिया भी धीरे-धीरे इस दुनिया में सक्रिय हो रही है| वह अपने विचारों, अनुभवों और समस्याओं को यहां लोगों के साथ साझा कर रही है| हाँ यह अलग बात है कि सड़कों-गलियों की गंदी फब्तियों से लेकर उनके खिलाफ़ होने वाली हिंसा ने यहां भी उनका पीछा नहीं छोड़ा है| भला छोड़ेगा भी कैसे…? इस दुनिया में भी वही शख्स हैं जो बाहर, गलियों, सड़कों और शहरों में है| लेकिन इन सब के बावजूद आधी दुनिया बेबाकी के साथ आगे बढ़ने की लगातार कोशिश कर रही है, जिसमें वह कुछ हद तक सफल भी हो रही है| अब वह अपने खिलाफ़ होने वाली हिंसा को यूँ नहीं जाने देती, उसे अपना बुरा नसीब नहीं समझती या फिर लोग क्या कहेंगे यह सोचकर चुप नहीं रहती है……अब वह बोलती है…..और बोल रही है| उसकी आवाज़ के बोल कभी उसके लेखन हो सकते है तो कभी कलाकार के रूप में एमा क्रेजर का बनाया आर्ट पीस|

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