इंटरसेक्शनल इंटरसेक्शनल फेमिनिज्म: शक्ति के सीमित दायरों और दमन के विस्तार का विश्लेषण

इंटरसेक्शनल फेमिनिज्म: शक्ति के सीमित दायरों और दमन के विस्तार का विश्लेषण

एक समस्या के अलग-अलग दिखने वाले पर आपस में जुड़े दमन और भेदभावों के तारों को दूर करके समानता को किस तरह स्थापित किया जायें, इसका अध्ययन इंटरसेक्शनल फेमिनिज्म में किया जाता है|

समय के साथ बदलाव ज़रूरी होता है| फिर बात चाहे जीवन की हो, समाज की हो या फिर उससे जुड़े सिद्धांतों की हो| अगर बात की जाए फेमिनिज्म यानी कि नारीवाद की तो सरल शब्दों कहा जाता है कि औरत और आदमी को बराबर मानने वाला इंसान फेमिनिस्ट कहलाता है| सालों पहले फेमिनिज्म की यह परिभाषा गढ़ी गयी थी| जैसे-जैसे समय बदला, परिस्थितियाँ बदलती गयीं| इसके बाद, जब समाजशास्त्रियों और विद्वानों ने अध्ययन किया तो उन्होंने पाया कि सिर्फ ऊपरी तौर पर समानता का राग अलापने से महिलाओं को कभी-भी समाज में बराबर का स्थान नहीं मिल सकता है क्योंकि सभी महिलाओं की परिस्थितियाँ और चुनौतियाँ एकसमान नहीं है|

उन्हें समाज में अलग-अलग तत्वों के आधार पर दमन और भेदभाव के अनेकों रूपों का सामना करना पड़ता है| जैसे – किसी भी उच्च जाति की महिला को बाहर जाकर काम करने की आज़ादी नहीं होती, जिससे उसकी स्वतंत्रता का हनन होता है| वहीं दूसरी ओर, निम्न जाति की महिला को घर से बाहर काम करने की आज़ादी तो होती है लेकिन उसके पास कोई स्थायी काम नहीं होता है| साथ ही, जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव के कारण वह अक्सर शोषण का शिकार भी होती है| यह इंटरसेक्शनल कहलाता है, जहां समस्या दोनों महिलाओं को अपनी जाति के आधार पर है, लेकिन उस समस्या के रूप अलग-अलग पर आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए है|

एक समस्या के अलग-अलग दिखने वाले पर आपस में जुड़े दमन और भेदभावों के तारों को दूर करके समानता को किस तरह स्थापित किया जायें, इसका अध्ययन इंटरसेक्शनल फेमिनिज्म में किया जाता है|

‘इंटरसेक्शनल फेमिनिस्म’ को पहली बार अमेरिका के प्रोफेसर किमबर्ले क्रेंशाव ने साल 1989 में परिभाषित किया था| यह अध्ययन है, सामाजिक पहचान व उससे जुड़ी संरचना के आधार पर होने वाले वर्चस्व स्थापना, दमन और भेदभाव का| इस सिद्धांत के तहत यह माना जाता है कि महिलाएं समाज में अलग-अलग आधारों पर दमन और भेदभाव का शिकार होती है| दमन और भेदभाव की यह पूरी संरचना न केवल एक-दूसरे जुड़ी होती है बल्कि यह लगातार एक-दूसरे को प्रभावित भी करती है|

जैसे रंग, प्रस्थिति और लिंग के आधार पर होने वाले भेदभाव एक-दूसरे से जुड़े होते और निरन्तर एक-दूसरे को प्रभावित भी करते है| किसी भी समाज को कई टुकड़ों में बांटने के लिए जाति, प्रस्थिति, रंग, लिंग, सांस्कृतिक पहचान और योग्यता जैसे तत्व सक्रिय तरीके से काम करते हैं|

क्रेंशाव बताते है कि इंटरसेक्शनल फेमिनिज्म के सिद्धांत के तहत यह अध्ययन किया जाता है कि कैसे किसी समाज की अलग-अलग शक्ति-संरचना वहां के अल्पसंख्यकों खासकर काले रंग की महिलाओं के साथ किस तरह व्यवहार करती हैं| शिक्षा के क्षेत्र में इस सिद्धांत को महत्वपूर्ण जगह दी गयी है| यह सिद्धांत मूलत: काले नारीवाद की उपज है| इसकी शुरुआत यह समझने के लिए की गयी कि आखिर क्यों और कैसे किसी भी समाज के अल्पसंख्यक पिछड़े लोगों को किताबों, सिद्धांतों, इतिहास के पन्नों, आंदोलनों और नारीवाद के अलग रखा गया?

शक्ति के सीमित दायरों और दमन के विस्तार का विश्लेषण

इंटरसेक्शनल सिद्धांत के ज़रिए नारीवाद, नस्लवाद-विरोधी, जाति-विरोधी और वर्ग की राजनीति के पीछे छिपे तत्वों को उजागर किया जा सकता है| यह हमें शक्ति के उन पहलुओं से रु-ब-रु करवाता है जिसका अनुभव समाज में हर कोई नहीं करता है| यह रेखांकित करता है उन पहलुओं को जिन्हें हमारे इतिहास से मिटा दिया गया है? किन तत्वों को समाज में उजागर करने की ज़रूरत है? हमारी चुनौतियाँ क्या-क्या है? और समाज में किन लोगों के साथ शक्ति और जगह साझा करने की ज़रूरत है? खासतौर पर यह हमारे सामने उन पहलुओं को उजागर करता है जिनके आधार पर समाज में शक्ति के सीमित दायरों और दमन के विस्तार को परिभाषित किया जाता है| जैसे- जाति, वर्ग और लिंग|

समझ दमन और विशेषाधिकार की

दमन की परिभाषा और इनके मानक कभी भी हर इंसान के लिए एक नहीं हो सकते हैं| यह परत-दर-परत वाली एक-दूसरे से जुड़ी एक ऐसी जटिल संरचना है जिनके पहलुओं को इंटरसेक्शनल फेमिनिज्म के माध्यम से समझा जा सकता है| इसे लागू करने के बाद हम यह कह सकते हैं कि नारीवाद वह है जिसके ज़रिए हम समाज में अलग-अलग प्रस्थिति, जाति, और रंग के आधार पर होने वाले भेदभाव और परतों में लिपटे इन अनुभवों के प्रभावों को रेखांकित कर सकते है| यह अनुभव उम्र और लिंग से अलग होते है| जैसे – किसी भी गोरे रंग की महिला को उसकी सुंदरता (जहां गोरे होना ही सुंदरता का मानक होता है) के आधार पर तुरंत नौकरी दे दी जाती है और उसके बाद लगातार कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है| वहीं दूसरी ओर किसी काले रंग की योग्य महिला को नौकरी दी जाती है और उससे अधिक से अधिक काम लिया जाता है| ऐसे में शोषण का शिकार दोनों महिलाएं होती है लेकिन दोनों के साथ होने वाले शोषण के आधार और प्रकार अलग है पर समस्या एक (शोषण) है|

इंटरसेक्शनल फेमिनिज्म समाज के इन विभिन्न तत्वों को ध्यान में रखकर नारीवाद से लेकर दमन के अलग-अलग कारकों का विश्लेषण करता है| दूसरे शब्दों में कहे तो इंटरसेक्शनल फेमिनिज्म, नारीवाद के उस प्रमुख विचार को चुनौती देता है जिसने साफतौर पर नारीवाद को समाज के गोरे/ उच्च वर्ग व जाति/ योग्य लोगों तक सीमित कर इसे समाज के आखिरी इंसान तक पहुंचने में रोड़े का काम किया है|

जब हम इंटरसेक्शनल फेमिनिज्म की बात करते है तो ‘विशेषाधिकारों’ पर बात करना ज़रूरी हो जाता है| यह एक ज़रूरी पहलू है क्योंकि किसी भी समाज में विशेषाधिकारी वर्ग और उनके प्रभाव के आधार पर अल्पसंख्यकों की स्थिति व संख्या का अंदाज़ा लगाया जा सकता है|

इसलिए विशेषाधिकार और इंटरसेक्शनल को जाने बिना फेमिनिज्म कभी भी दमन-विरोधी नहीं बन सकता है| जाति, लिंग, वर्ग और योग्यता के आपस में जुड़े रहकर एक-दूसरे को प्रभावित करने के तरीकों को समझे बिना हम कभी भी नारीवाद के वास्तविक स्वरूप और भूमिका को नहीं समझ सकते|

ज़रूरी है आंतरिक वर्चस्व की समझ

जब किसी विशेषाधिकारी समूह का सदस्य सोचता है कि उसका समूह समाज में सर्वोपरि है और उसे मिले सभी विशेषाधिकार प्राकृतिक हैं तो यह आंतरिक वर्चस्व कहलाता है| इसी तर्ज पर, समाज का अल्पसंख्यक पिछड़ा समूह खुद की समस्याओं की वजह व्यक्तिगत मान लेता है, जिसकी उपज वास्तव में विशेषाधिकारी समूह की वजह से होती है| ऐसे में, इंटरसेक्शनल एक सही समझ विकसित करने और विशेषाधिकारी समूह की आलोचना के द्वार खोलता है| यह आंतरिक वर्चस्व के उन पहलुओं को बेपर्दा करता है, जिसे न देख पाने की वजह से समाज का अल्पसंख्यक पिछड़ा वर्ग अपनी दुर्गति को अपनी नियति मान बैठता है|

इंटरसेक्शनल फेमिनिज्म, समाज की सभी महिलाओं की बजाय, हाशिए पर होने वाली महिला-संबंधित मुद्दों को रेखांकित करता है| इस सिद्धांत में इस चुनौती का सामना किया जाता है कि किस तरह सामाजिक संरचना में अलग-अलग आधारों पर महिलाओं के साथ भेदभाव के समावेशन को आकार देकर उन्हें लागू किया जाता है| महिला और अल्पसंख्यक पिछड़े वर्गों के संबंध में वे अलग-अलग आधारों पर स्वयं को परिभाषित करते हैं और ये आधार एक दूसरे से पूरी तरह अलग होते हैं| इन्हीं ‘आधारों’ का अध्ययन नारीवादी विश्लेषण में किया जाता है| इंटरसेक्शनल फेमिनिज्म को उन सभी आधारों पर लागू किया जा सकता है जो एक-दूसरे से जुड़कर दमन को प्रभावित और उन्हें बनाये रखने में सहायक होते है, क्योंकि उनमें से एक भी कारक स्वतंत्र रूप से काम नहीं करता है|

Also read in English: Intersectional Feminism 101: Why It’s Important And What We Must Remember

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