इंटरसेक्शनलजेंडर पुरुष का ‘शादीशुदा’ होना उसके गुनाह कम नहीं करता  

पुरुष का ‘शादीशुदा’ होना उसके गुनाह कम नहीं करता  

किसी लड़की के साथ यौन-उत्पीड़न की हो या फिर पत्नी के साथ घरेलू हिंसा की शादीशुदा पुरुष को सही बताकर उसके गुनाह को कम करने की कोशिश की जाती है|

भारतीय संस्कृति में ‘शादी’ को मानव-जीवन का अहम हिस्सा बताया गया, जिससे अर्थ, गृहस्थ और समाज की गतिशीलता कायम रहे| चूँकि अपना समाज पितृसत्तात्मक है तो पुरुषों का बोलबाला होना स्वाभाविक है और अगर पुरुष शादीशुदा हो तो उसे ‘जिम्मेदार, समझदार, ईमानदार यानी कि अच्छा नागरिक’ (वो ऐसा हो या नहीं, लेकिन) माना जाता है| जैसे उसके लिए शादीशुदा होना इन सब बातों का घोषणापत्र हो|

गुनाहगार शादीशुदा पुरुष का शुद्धिकरण

लेकिन जब बात महिला के सन्दर्भ में आती है तो उसके लिए सिर्फ ‘सामंजस्य बिठाकर कैसे परिवार चलाया जाये’ बस यही कर्तव्य, समझदारी और उसके अस्तित्व की पहचान बन जाता है| समाज में शादीशुदा पुरुष को हर दिशा-दशा में साफ़-पाक माना जाता है, खासकर महिला-हिंसा के सन्दर्भ में| फिर बात चाहे किसी लड़की के साथ यौन-उत्पीड़न की हो या फिर पत्नी के साथ घरेलू हिंसा की| पहली नज़र में पुरुष को सही बताकर उसका शुद्धिकरण कर दिया जाता है, जो पीड़िता को हमेशा अपने कदम पीछे करने के लिए मजबूर कर देता है| हाँ, ये अलग बात है कि अगर पीड़िता ने अपनी हिम्मत कायम रखी तो पुरुष का गुनाह समाने आ ही जाता है|

जायरा वसीम यौन-उत्पीड़न मामले एक पत्नी की दलील

हाल ही में बॉलीवुड अभिनेत्री जायरा वसीम से विस्तारा एयरलाइन्स की फ्लाइट में यौन उत्पीड़न की घटना सामने आई, जिसे खुद ज़ायरा ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट के ज़रिए साझा किया था| जायरा ने जैसे ही अपने साथ हुई इस घटना पर चुप्पी तोड़ी प्रशासन ने तुरंत कार्यवाई की और आरोपी पुलिस की गिरफ्त में आ गया| आरोपी की पहचान 39 साल के विकास सचदेव के तौर पर हुई है।

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आरोपी विकास की गिरफ्तारी के बाद उनकी पत्नी ने अपने पति का बचाव किया है। उन्होंने मीडिया से कहा ‘मेरे पति बेगुनाह हैं। उनका तंग करने का कोई इरादा नहीं था। परिवार में एक बच्चे की मौत हुई थी, वे वहां गए थे। 24 घंटे से वे सोए नहीं थे। उन्होंने क्रू से कहा था कि वे सोना चाहते हैं, लिहाजा उन्हें डिस्टर्ब न करें। उनका पैर आर्म रेस्ट पर था, लेकिन उनका तंग करने का कोई इरादा नहीं था।‘

इस केस में पुरुष की पत्नी सीधे अपने पति के बचाव में उतर गयी, जो कुछ नया और हमारी संस्कृति के लिए गलत भी नहीं है क्योंकि शादीशुदा पुरुष अपनी पत्नी के प्रति वफ़ादार और बाकी औरतों के लिए इज्ज़तदार नज़र-व्यवहार रखेगा या नहीं इसबात का वचन-रीति-रिवाज हमारी संस्कृति में भले ही साफ़-साफ़ न बताया गया हो लेकिन पत्नी के लिए ये बात हर किस्से-कहानी-श्लोक-स्तुतियों में कही गयी है कि उसे हर सुख-दुःख में अपने पति का साथ देना है| उसपर आने वाली हर विपदा को पहले खुद झेलना है, जैसा – सावित्री ने किया था|

शादीशुदा महिला का पतिव्रता वाला परिचय

नतीजतन हम महिलाएं भी पितृसत्ता के इस गढ़े-गढ़ाए पाठ को शादी के बाद अपनी आत्मा में आत्मसात कर लेती है और पति अपने ईमानदारी, जिम्मेदारी और वफादारी का परिचय दे न दें लेकिन हम महिलाएं अपनी पतिव्रता होने का परिचय देने से कभी नहीं चूकती है|

इसी तर्ज पर इस केस में आरोपी की पत्नी ने जायरा को सुझाव देते हुए उनपर सवाल भी खड़ा कर दिया कि ‘उन्होंने (जायरा) तुरंत तो रियेक्ट क्यों नहीं किया? मैं नहीं जानती कि वे अब ऐसे आरोप क्यों लगा रहे हैं। हो सकता है कोई गलतफहमी हुई हो। वे बाल-बच्चों वाले शख्स हैं और ऐसा कभी नहीं कर सकते। हम इंसाफ चाहते हैं।‘

ये घटना मात्र एक जीवंत उदाहरण है| हम अपनी रोजमर्रा के जीवन में भी ऐसे सैकड़ों उदाहरण देख सकते है, जब पड़ोस में रहने वाले शादीशुदा अंकल अपनी बेटी की उम्र की लड़की पर गंदी नज़र रखते है और जब शादीशुदा अधेड़ उम्र का पुरुष सार्वजनिक-भीड़भाड़ वाली जगहों पर हमें गंदे तरीके से छूने की कोशिश करता है| इन सबके खिलाफ जब हम महिलाएं आवाज़ उठाती है तो पुरुष की तरफ से उसका बचाव करने सबसे पहले उसकी पत्नी आती है और उसके बाद बाकी लोग ये कहते हुए कि ‘अरे! वो तो शादीशुदा है वो भला ऐसी हरकत क्यों करेगा? तभी तो उसकी पत्नी भी उसके पक्ष में बोल रही है, ज़रूर इसी (पीड़िता) ने कोई गलत काम किया होगा|’

पतिव्रता होने से पहले इंसान बनना अच्छा है

ऐसे की कई बार शादी के बाद पति के अवैध संबंधों पर भी महिलाओं का यही रवैया देखने को मिलता है, जब शुरूआती दौर में वे पहले दूसरी महिला के चरित्र पर तमाम आरोप-सवाल खड़ा करके अपने पति को भोलाभाला साबित करने में लग जाती है और जब उनके सामने पूरी कहानी आती है तब तक बेहद देर हो चुकी होती है|

मैं ये नहीं कहती कि आप अपने पति-साथी का बचाव न करें| लेकिन ये ज़रूर कहूंगी कि उनपर अंधविश्वास न करें, क्योंकि जब एक महिला (जो कि आपके पति द्वारा किसी भी तरह की हिंसा का शिकार हुई है) को पहली चुनौती पुरुष की पत्नी से मिलती है तो वो न चाहते हुए भी अपने कदम पीछे करने को मजबूर हो जाती है और आपकी बेबुनियाद दलीलों से उसपर पितृसत्ता की दोहरी मार पड़ती है| शायद इन्हीं सब व्यवहारों को देखकर अक्सर कह दिया जाता है कि ‘औरत ही औरत की दुश्मन होती है’ लेकिन आप इसे अपने अंधभक्ति में सच मत होने दीजिये क्योंकि पतिव्रता बनने से पहले इंसान बनना आपके लिए ज्यादा अच्छा होगा| ऐसा इंसान जो अपनी ही तरह दूसरों की भी इज्जत-स्वतंत्रता को मान-सम्मान दें, साथ दे और ध्यान रखें कि ‘किसी भी शादीशुदा पुरुष के गुनाह इसलिए माफ़ हो कि वो शादीशुदा है, इसकी पैरवी आप कभी मत करियेगा| क्योंकि ऐसा करके आप कहीं-न-कहीं अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का काम करेंगीं|

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