स्वास्थ्यशारीरिक स्वास्थ्य एचआईवी/एड्स से सुरक्षा और गर्भावस्था

एचआईवी/एड्स से सुरक्षा और गर्भावस्था

एचआईवी/एड्स महिलाओं के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाली अहम वजहों में से है और मातृ मृत्यु के मामलों में इसकी सही भूमिका जानना कठिन है|

औरत को परिवार का केंद्र माना जाता है, यानी कि वो इंसान जिसपर पूरे परिवार के स्वास्थ्य, सुविधा और व्यवस्था की जिम्मेदारी होती है | देश-समाज चाहे जो भी हो महिलाओं के प्रति करीब-करीब सोच यही रहती है जिसके चलते महिलाएं अपने स्वास्थ्य पर कम ध्यान दे पाती है और वे धीरे-धीरे जानलेवा बीमारियों का शिकार होती जाती है | महिलाओं में होने वाली प्रमुख बीमारियों में से एक है – एचआईवी/एड्स |

एचआईवी/एड्स की महामारी महिलाओं के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाली अहम वजहों में से एक है| दुनियाभर में एचआईवी संक्रमित 37.8 मिलियन लोगों में करीब आधी संख्या महिलाओं की है और हर साल एचआईवी संक्रमित 2 मिलियन महिलाएं गर्भधारण करती हैं| इनमें से अधिकाँश महिलाएं ऐसी संसाधनहीन परिस्थितियों में रहती हैं जहाँ मातृत्व की वजह से रोग होने और मातृ मृत्यु की आशंका बहुत ज़्यादा होती है और हर साल गर्भधारण, शिशु जन्म और गर्भसमापन के कारण होने वाली मृत्यु की 5,29,000 में से अधिकाँश घटनाएँ यहीं पर घटित होती हैं | अलग-अलग देशों में गर्भवती महिलाओं में एचआईवी संक्रमण की दर में बहुत अंतर पाया जाता है और यह 1 फीसद से लेकर 40 फीसद के बीच पाया जाता है| हालांकि कुछ एशियाई देशों में एचआईवी संक्रमण का फैलाव बहुत तेज़ी से बढ़ा है फिर भी अफ्रीका में एचआईवी संक्रमण की दर अब भी बहुत ज़्यादा है|

महिलाओं में होने वाली प्रमुख बीमारियों में से एक है – एचआईवी/एड्स |

मातृ मृत्यु के मामलों में एचआईवी/एड्स के कारणों की सही भूमिका को जान पाना कठिन है क्योंकि गर्भवती महिलाओं में संक्रमण के हालत की हमेशा जानकारी नहीं मिल पाती, इसलिए इस संदर्भ में मौजूदा आंकडें इस समस्या को कम करके ही आंकते हैं, लेकिन इस बात के भी प्रमाण मिल रहे हैं कि एचआईवी/एड्स के कारण मातृ मृत्यु के मामलों में बहुत ज्यादा वृद्धि हुई है| एचआईवी संक्रमण से ज़्यादा प्रभावित कुछ क्षेत्रों में तो प्रसव से जुड़ी समस्याओं की तुलना में एड्स गर्भवती महिलाओं की मृत्यु का प्रमुख कारण बनता जा रहा है| गर्भवती स्त्रियों के स्वास्थ्य पर गर्भधारण और एचआईवी के संभावित दुष्परिणाम केवल प्रसव के 42 दिन तक ही सीमित नहीं रहते, जिस अवधि को आमतौर पर मातृ मृत्यु के मामलों के आंकड़ों में शामिल किया जाता है| यही वजह है कि एचआईवी संक्रमण और मातृ मृत्यु के मामलों में संबंध दर्शाने वाले आंकडें इन दो परिस्थितियों से सामने आने वाले परिणामों और गर्भधारण के बाद के पहले साल में उनसे होने वाले प्रभावों का कम आकलन करते हों| हो सकता है कि स्वास्थ्य केन्द्रों के स्तर पर मातृ मृत्यु और एचआईवी में संबंध स्पष्ट न हो सके क्योंकि आमतौर पर इन दोनों को अलग-अलग स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की निगरानी में रखा जाता है |

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विकसित देशों में माँ से शिशु को होने वाले एचआईवी संक्रमण के जोखिम को कम करने के लिए अपनाई जा रही सफल कार्य योजनाओं के परिणामस्वरूप बच्चों में एचआईवी का संक्रमण करीब-करीब खत्म हो गया है| यह काम योजनाएं अन्य कम संसाधनों वाले देशों में भी सफल सिद्ध हो रही है| माँ से बच्चे को होने वाले एचआईवी संक्रमण की रोकथाम से संबंधित कार्यक्रमों का विस्तार दुनियाभर में बढ़ गया है लेकिन एचआईवी संक्रमण की अधिकता वाले प्रदेशों में अब भी अधिकाँश गर्भवती महिलाओं को एचआईवी के बारे में सही सलाह और जांच की सुविधाएं नहीं मिल पाती| विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पीएमटीसीटी कार्यक्रमों के लिए एक चार सूत्री कार्य योजना अपनाए जाने का सुझाव दिया है जो नए संक्रमण की रोकथाम और एचआईवी संक्रमित महिलाओं में अनचाहे गर्भ को रोकने के साथ-साथ शिशुओं में संक्रमण की रोकथाम और उचित देखभाल सेवाओं पर ख़ास ध्यान देता है |

गर्भवती महिला के भोजन में पोषण की कमी से भी एचआईवी संक्रमण तेज़ी से फैलता है|


पीएमटीसीटी कार्यक्रमों की बढ़ती उपलब्धता और इस बारे में जागरूकता के स्तर में वृद्धि होने के कारण एचआईवी के बारे में स्वैच्छिक रूप से परामर्श दिए जाने और जांच कराए जाने के प्रयासों में गर्भवती महिलाओं पर ख़ास ध्यान दिया जाता है| गर्भावस्था के कारण महिलाओं और पुरुषों तक एचआईवी की रोकथाम और उपचार प्रक्रियाओं को पहुंचा पाने का अच्छा अवसर होता है और इसी समय महिलाएं स्वास्थ्यकर्मियों के संपर्क में होती है, जिससे उनमें व्यवहार परिवर्तन किया जा सकता है| कुछ परिस्थितियों में गर्भावस्था और प्रसव के बाद के समय में एचआईवी संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है क्योंकि गर्भावस्था के दौरान या इसके बाद सेक्स न किये जाने जैसी सांस्कृतिक मान्यताओं के कारण संभव है कि इन महिलाओं के यौन साथी दूसरी महिलाओं के साथ संबंध बनाते हों और जिसके चलते वे एड्स संक्रमित हो जाते है|

गर्भवती महिलाओं में स्वैच्छिक रूप से एचआईवी संक्रमण की परामर्श और जांच सेवाएं देने से संक्रमण का जल्दी पता चल पायेगा और जानलेवा जटिलताओं का उपचार संभव हो पायेगा, जहाँ एंटी रेट्रो-वायरल दवाएं उपलब्ध हों, वहां गर्भवती महिलाओं में आवश्यकता होने पर गर्भावस्था के दौरान ही उपचार आरंभ कर देना चाहिए ताकि मातृ मृत्यु के जोखिम को कम किया जा सके|

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गर्भवती महिला के भोजन में पोषण की कमी से भी एचआईवी संक्रमण तेज़ी से फैलता है| तंजानिया में अकस्मात आधार पर नियंत्रित अध्ययन से पता चला कि मल्टी विटामिन की गोलियां देने से एचआईवी संक्रमित महिलाओं में एचआईवी के प्रसार को धीमा किया जा सकता है और ऐसा करने से कम लागत से ही एंटी रेट्रो-वायरल दवाओं द्वारा उपचार आरंभ करने में देर की जा सकती है| पर ये सब तभी संभव है जब महिलाओं में एचआईवी/एड्स संक्रमण का पता समय से लगे और ये बिना जागरूकता के संभव नहीं है|

(स्रोत : UNAIDS, AIDS epidemic update 2004 UNAIDS/WHO – 2004 UNAIDS/04.45E (English original, December 2004). Geneva : UNAIDS, 2004)


यह लेख क्रिया संस्था की वार्षिक पत्रिका मातृ मृत्यु एवं रुग्णता (अंक 3, 2008) से प्रेरित है| इसका मूल लेख पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें|

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तस्वीर साभार : Medscape

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