इंटरसेक्शनलशरीर पैड खरीदने में माँ को आज भी शर्म आती है

पैड खरीदने में माँ को आज भी शर्म आती है

मासिकधर्म और सैनिटरी पैड पर हमारे घरों में चर्चा करने की बेहद ज़रूरत है और जिसकी शुरुआत हम महिलाओं को ही करनी होगी।

आज सारी दुनिया ख़ासकर महिला अधिकारों पर काम करने वाली संस्थाएं जब सेनेटरी पैड पर टैक्स लगने के खिलाफ आवाज़ उठाने और मासिकधर्म के स्वच्छता दिवस (28 मई) पर अपने विचार स्वतंत्र तौर पर साझा कर रही है तो इस दौर ने मुझे भी पीरियड को लेकर अपनी जिंदगी के अनुभवों को साझा करने की एक वाजिफ वजह दे दी है|

बात तब की है जब मैं सातवीं कक्षा में पढ़ती थी| एक दिन हम स्कूल में गपशप कर रहे थे तभी  मेरी एक सहेली ने  कहा कि तुम्हें पता है कल शाम टीवी में कोटेक्स का विज्ञापन देखकर मेरे अंकल ने मेरी माँ से पूछा कि ये कोटेक्स क्या है? यह कहते हुए वो मुस्कुराई।

इसपर मैंने भी जिज्ञासावश पूछा कि ‘तुम्हें पता है ये क्या है?

उसने जवाब दिया – ‘हाँ। बुद्धू  तुमको इतना भी नहीं पता| यह सैनिटरी पैड है। इसको माहवारी (पीरियड्स) के दौरान इस्तेमाल करते हैं| उसने बताया कि अभी तक हमारे घर की सभी महिलाएं माहवारी के समय पुराने कपड़ों का इस्तेमाल करती थी। और हर महीने उसी कपड़े को धोकर के दोबारा इस्तेमाल करती थी| लेकिन सेनेटरी पैड आने के बाद से महिलाएं कपड़े की जगह पैड का इस्तेमाल करने लगी है|

हम उन पुराने कपड़ों का इस्तेमाल करते हैं जो घर में नहीं रखे जाते|

इस जानकारी के बाद से मैं कोटेक्स ख़रीदने  के लिए अपने जेब खर्च में से पैसे जमा करने लगी। क्योंकि मैं ये जानना चाहती थी कि क्या सच में ऐसा कुछ होता है या वो मुझे बेवकूफ़ बना रही है। अब तक मुझे यही सिखाया गया था कि ये सिर्फ महिलाओं के बीच की बात है और किसी भी पुरुष के सामने इसकी बात नहीं करनी चाहिए| क्योंकि ये बहुत गंदा होता है| इसलिए हम उन पुराने कपड़ों का इस्तेमाल करते हैं जो घर में नहीं रखे जाते बल्कि जूते-चप्पल की जगह  या छत के किसी कोने में थैले में छिपाकर रखे जाते हैं। ख़ासकर ऐसी जगह जहां कोई पुरुष देख न पायें। चार दिन बाद मैं कोटेक्स ख़रीदने के लिए बीस रुपये जमा कर चुकी थी। लेकिन मैं उसे ख़रीद नहीं पा रही थी क्योंकि मुझे कोई ऐसी दवॉई की दुकान नहीं मिली जहाँ कोई महिला दुकानदार हो। फिर मैंने अपनी परेशानी अपनी सहेली को बताई। उसने मुझे बताया कि ये तो हमारे स्कूल की किताबों की दुकान पर भी मिलता है।

फिर हम लंच का इंतजार करने लगे। जैसे ही घण्टी बजी हम उस दुकान की तरफ दौड़े पर वहां भी हमें निराशा हाथ लगी क्योंकि वहाँ पहले से ही लड़के और लड़कियों की भीड़ जमा थी। हम दोनों एक कोने में सटकर खड़े हो गए और उन सबके जाने का इंतजार करने लगे, क्योंकि हमें जो चाहिये था हम उसका नाम ज़ोर से बोल नहीं सकते थे। जैसे ही आधी छुट्टी खत्म हुई और सब लोग एक-एक करके चले गए हमने दुकानवाली आंटी को बताया कि हमें क्या चाहिए। पर खतरा अभी भी टला नहीं था क्योंकि हमारे एक टीचर तभी वहां आ धमके और हमें डाँटकर कक्षा में भेजने लगे। हमने जवाब दिया कि सामान लेकर जा रहें हैं| इसपर उन्होंने कहा जो भी लेना है मेरे सामने जल्दी लो और भागो। फिर क्या था हमारी तो सांस गले में अटक गई। जैसे-तैसे दुकानदार आंटी ने मोर्चा संभाला और कहा सर मैं देकर भेज रही हूँ आप निश्चिन्त होकर जाए। आखिरकार मैंने सेनेटरी पैड ख़रीद ही लिया और घर जाकर छिपा दिया। अब अगली चुनौती मेरे सामने यह थी कि इसे इस्तेमाल कैसे किया जाए? और अब मैं इसके बारे में अपनी सहेली से नहीं पूछना चाहती थी।

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इसके बाद करीब छह महीने तक मैंने पैड में लगी स्ट्रीप के रैपर बिना खोले उसको पैंटी में ऐसे ही रखकर के इस्तेमाल किया| फिर एक दिन जब घर में कोई नहीं था तो मैंने दिन के उजाले में सैनिटरी पैड को ध्यान से देखा जिसमें मुझे पैड के एक तरफ लगा चिपकाने वाला हिस्सा दिखा। अब मैं पैड का इस्तेमाल ठीक से करने लगी जिसका मुझे माहवारी के दिनों में फायदा मिला। और अब गीलेपन, खुजली, गीले कपड़े से छील जाना और इस दौरान बाहर जाने के डर की समस्या भी ख़त्म हुई।

इस दिन तक पहुंचने के लिए मैंने लंबा सफर तय किया था जिसे मैंने अपनी बड़ी बहन से साझा किया। और एक साल बाद अपनी छोटी बहन से भी जब उसकी माहवारी शुरू हुई। इस तरह हम तीनों बहनों को इन ख़ास दिनों में कपड़े के इस्तेमाल से आज़ादी मिली। पर अभी भी हमारे जेब खर्च का एक हिस्सा पैड ख़रीदने में जाता था ।

माँ को अभी भी इन सब बातों में शर्म महसूस होती है।

जब मेरी माँ को इस बारे में पता चला तो वो बहुत चिल्लाई और बोला कि ये सिर्फ पैसे की बर्बादी है। हमने तो हमेशा कपड़ा ही इस्तेमाल किया है और कोई परेशानी भी नहीं हुई और  चार बच्चों को जन्म दिया भी है। आजकल लोग बाजार में पैसा कमाने के लिए जाने क्या-क्या बनाते हैं| हमारे घर और आस-पड़ोस में सभी महिलाएं कपड़े का ही इस्तेमाल करती हैं|

फिर बारिश के मौसम में एक दिन उनके पास सूखा कपड़ा नहीं था। क्योंकि वो कपड़े को हमेशा छत के किसी कोने में रखती थी जो बारिश में भीग चुका था। फिर उन्होंने हमसे पूछा कि तुम्हारे पास वो है क्या जो तुम लोग इस्तेमाल करते हो? अब मैं बहुत उत्साहित थी क्योंकि अब मेरी बारी थी अपनी माँ को सिखाने की। मैंने उनको पैड इस्तेमाल करना सिखाया। इसके बाद वो भी कपड़े को छोड़कर पैड इस्तेमाल करने लगी। मजे की बात ये रही कि अब हमें अपने जेब खर्च से  पैड ख़रीदने से छुटकारा मिल गया।

ये समाज तब तक इस मुद्दे पर बात नहीं करेगा जब तक हम और आप खुद इसपर अपनी चुप्पी नहीं तोड़ेंगे|

कहानी यहीं ख़त्म नहीं हुई। क्योंकि तेरह साल की उम्र से छब्बीस  साल तक सैनिटरी पैड, ब्रा और पैंटी ख़रीदने का काम मेरे हिस्से में रहा। माँ को अभी भी इन सब बातों में शर्म महसूस होती है।अब मेरी शादी के बाद मेरे पति ये सारी चींजें ले तो आते हैं पर जब भी मौका मिलता है मुझे ही ये काम सौंप देते हैं। पर अभी पिछले हफ्ते ही रात के करीब ग्यारह बजे मुझे माँ के घर जाकर उन्हें पैड देकर आना पड़ा। इसपर जब मेरे पति ने कहा कि मैं देकर आता हूँ तो मेरा जवाब था तुम तो दे आओगे पर वो शरमा जाएंगी और डाँट मुझे पड़ेगी।

इस बात को स्वीकारने में कोई हर्ज नहीं है कि अभी भी हमें मासिकधर्म और सैनिटरी पैड पर हमारे घरों में चर्चा करने की बेहद ज़रूरत है और जिसकी शुरुआत हम महिलाओं को ही करनी होगी। क्योंकि ये समाज तब तक इस मुद्दे पर बात नहीं करेगा जब तक हम और आप खुद इसपर अपनी चुप्पी नहीं तोड़ेंगे|


ये लेख बीमा साउ ने लिखा है| बीमा ने दिल्ली विश्वविद्यालय के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज से बंगाली साहित्य में स्नातक किया है और उसके बाद करीब तीन साल डेवलोपमेन्ट सेक्टर और इंसोरेंस सेक्टर में बतौर कंटेंट राइटर काम किया। अब वह अपनी दो छोटी बेटियों के साथ-साथ अपने पूरे परिवार को संभालती हैं और अपने लेखन को जारी रखने की दिशा में प्रयासरत हैं।

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