इंटरसेक्शनलयौनिकता औरतों की अनकही हसरतें खोलती है: लस्ट स्टोरी

औरतों की अनकही हसरतें खोलती है: लस्ट स्टोरी

लस्ट स्टोरी समाज के अलग-अलग तबके में आधी आबादी के उस आधे किस्से को बयाँ करती है जिसे हमेशा चरित्रवान और चरित्रहीन के दायरें में समेटा गया है|

:

फ़िल्में समाज का आईना होती है और कई बार ये समाज को आईना दिखाने का भी काम करती है| मैंने हाल ही में एक फिल्म देखी, जिसका नाम था, लस्ट स्टोरी। नेटफ्लिक्स की पेशकश इस फिल्म का नाम ही नहीं इसकी कहानी भी अपने आप में ख़ास है| जैसा कि नाम से मालूम होता है कि ये लस्ट पर केंद्रित फिल्म है, लेकिन आपको बता दूँ ये फिल्म इस शब्द के असीमित दायरों पर केंद्रित है| चार अलग-अलग कहानियों को एक फिल्म में संजोने का काम डायरेक्टर अनुराग कश्यप, जोया अख्तर, करण जौहर और दिबाकर बनर्जी ने अपने बेहतरीन निर्देशन से बखूबी किया है|

ये तो हुई फिल्म के कवर की बात अब बात करते हैं इस फिल्म की कहानी खासकर महिला किरदार की| आपको पहले ही बता दूँ, मैं इस फिल्म की समीक्षा नहीं कर रही बल्कि मैं इस फ़िल्मी कहानी के उन महिला किरदारों के बारे में आपसे अपने विचार साझा करने जा रही हूँ, जिसे मैंने देखा, समझा और महसूस किया है|

आधुनिकता और परंपरा के बीच फंसी ‘कालिंदी’

फिल्म लस्ट स्टोरी की शुरुआत होती है अनुराग कश्यप की पहली कहानी की बेहतरीन एक्ट्रेस राधिका आप्टे और सैराट के एक्टर आकाश ठोसर से| फिल्म में राधिका एक प्रोफेसर कालिंदी का किरदार निभा रहीं हैं जो कि शादीशुदा महिला हैं और उसका एक स्टूडेंट आकाश के साथ ओपन रिलेशनशिप हैं| फिल्म में कालिंदी खुद के लिए कहती है कि ‘वो खुद को और अपनी जिंदगी को और बेहतर समझने की कोशिश कर रही है’, जिसके तहत वो अपने संबंधों और इच्छाओं के साथ अलग-अलग प्रयोग करती है|

तस्वीर साभार : डीएनए

कालिंदी के किरदार के माध्यम से आधुनिकता और परंपरा के बीच झूलती सशक्तिकरण वाली परिभाषा को बखूबी दर्शाया गया है, जहाँ एक आत्मनिर्भर शादीशुदा महिला अपनी शर्तों पर ज़िन्दगी जीती है और अपनी पसंद से अपने स्टूडेंट के साथ रिलेशन में है| लेकिन वहीं दूसरी तरफ वो लोक-लाज और अच्छी औरत के अपने सांचे में कोई आंच नहीं आने देना चाहती है| उसे हर वक़्त इसी बात का डर रहता है कि ‘कहीं वो कुछ गलत तो नहीं कर रही|’ या ‘अगर लोगों को उसके रिलेशन के बारे में पता चलेगा तो उसकी इज्ज़त पर क्या असर पड़ेगा|’

‘लस्ट स्टोरी’ औरतों की अनकही हसरतें खोलती है|

कालिंदी मौजूदा समय में आत्मनिर्भर महिला की कशमकश को बेहद सटीक तरीके से दर्शाती है, जहाँ महिलाएं आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से आत्मनिर्भर होती है, लेकिन जब बात उनकी यौनिकता खासकर यौन संबंधों को लेकर उनकी इच्छा की होती है तो वो अज़ीब-सी कशमकश में पड़ जाती है| इसकी ढ़ेरों वजहें हो सकती हैं| लेकिन मूल यही है कि ‘अच्छी-बुरी औरत वाले समाज के तथाकथित सांचे’ की वरीयता और इसे जीवन का लक्ष्य बनाकर लड़की को घुट्टी की पिलाने वाला संस्कार|

और पढ़ें : गर्व है मुझे कैरेक्टरलेस होने पर – मेरी कहानी

दुनिया के रंगों को निहारती और जीती ‘सुधा’

लस्ट स्टोरी की दूसरी कहानी है सुधा की, जिस किरदार को भूमि पेडनेकर ने निभाया है| वो मुंबई के वन बीएचके फ्लैट में एक बैचलर, अमीर आईटी इंजीनियर की मेड है| फिल्मों, सीरियलों और सबसे खास अपनी ज़िन्दगी में हर रोज के वाक्यों को देखने के बाद अब हमें ये बात अपने दिमाग से निकाल देनी चाहिए कि शादी के साथ ही सेक्स करने की इच्छा इंसान में नहीं आती, बल्कि एक उम्र के बाद ये हमारे की ज़रूरत होती है| फिल्म में इंजीनीयर और मेड भी अपनी इसी ज़रूरत को पूरा करते है| ये उनके ज़िन्दगी का एक हिस्सा होता है, जो साफ़ या यों कहें घोषित तौर पर सिर्फ ज़रूरत पर टिका होता है| शारीरिक संबंध को वो दोनों ही शादी या जन्म-जन्म के साथ के तौर पर नहीं देखते|

तस्वीर साभार : स्क्रोल

कहानी में सुधा ने बिना कुछ कहें बहुत कुछ कहा है| कहानी के गिने-चुने डायलाग में कई जगह वो बेबस-सी दिखती है लेकिन बहुत ज़ल्द ही वो हालात को समझकर आगे भी बढ़ती है| सुधा का किरदार जहाँ एक तरफ अपनी शर्त पर जीती महिला की कहानी बयाँ करता है| वहीं दूसरी तरफ मिडिल क्लास फैमली में मेड के प्रति लोगों के क्रूर नज़रिए और व्यवहार को भी दर्शाता है|

हम लाख शारीरिक संबंधों की बात पर अपनी नज़रें झुकाकर संस्कारी बनने का ढोंग करें, लेकिन सच तो यही है कि इस शर्म के चलते ही आज हम जनसंख्या फिस्फोट के दौर में जी रहे हैं|

खुशियों को तलाशती ‘रीना’

फिल्म की तीसरी कहानी है रीना की, जिसे मनीषा कोइराला ने निभाया है| वो एक कामकाजी और आत्मनिर्भर महिला है| इसके साथ ही, रीना शादीशुदा है और दो बच्चों की माँ भी| शादी के तेरह साल बाद वो अपने स्वार्थी पति से तंग आकर अपनी ख़ुशी तलाशती है और दूसरे मर्द के साथ रिलेशनशिप में जाती है|

तस्वीर साभार : सिनेस्तान

रीना होशियार है, कामयाब है उसे पता है उसे क्या चाहिए और उसे पता है अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने के लिए पति से कैसे बचना है| वो दो स्वार्थी आदमियों (पति और बॉयफ्रेंड) के बीच झूलती अपनी पहचान, अधिकार और खुशी ढूंढती है और अंत में बेबाकी से अपने पति को अपने एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर के बारे में बताती है| इसपर उसके पति का व्यवहारिक रवैया भी सराहनीय है, जब वो ठंडे दिमाग से अपनी पत्नी की बात को सुनता है और समझता है|

और पढ़ें : मंटो की वो अश्लील औरतें

सेक्स, संतुष्टि और रेखा-मेघा

लस्ट स्टोरी की चौथी कहानी है रेखा (नेहा धूपिया) और मेघा वर्मा (कियारा आडवाणी) की| ये दोनों ही स्कूल टीचर हैं| रेखा हमेशा अपनी दोस्त मेघा को बोल्ड लेक्चर देती है| मेघा की शादी पारस के साथ होती है और शादी के साथ शुरू होता है सेक्स करने का सिलसिला| पारस अच्छा इंसान है और मेघा से प्यार भी करता है, लेकिन वो मेघा को शारीरिक रूप से संतुष्ट नहीं कर पाता है| इसलिए मेघा अपनी दोस्त रेखा से प्रेरित होकर एक सेक्स टॉय लाती है, जिससे वो अपने आपको संतुष्ट कर सके| यों तो इस सीन को हंसाने वाले सीन के तौर पर फिल्माया गया है, लेकिन ये सेक्स-शादी और औरत के प्रति समाज के नजरिये को खोलने में बेहद मददगार साबित हुआ है|

तस्वीर साभार : हिन्दुस्तान टाइम्स

मेघा की सास, पति और जेठानी को ये पता चल जाता है कि वो सेक्स टॉय का इस्तेमाल करती है और उसके बाद शुरू होती मेघा के चरित्र पर पितृसत्ता के छीटें उछालने की वर्षा| बात यहाँ तक बढ़ती है कि शादी टूटने की बात आ जाती है| यहाँ उसकी सास की एक बात इस विषय पर समाज की सोच को बयाँ करती है कि ‘हमारे खानदान में ऐसी कोख से बच्चे पैदा नहीं हो सकते|’ मतलब ये कि वो औरत सेक्स टॉय का इस्तेमाल करे वो इतनी बुरी होती है उसके बच्चे को भी स्वीकारा नहीं जा सकता है| इस सबके बीच मेघा अडिग रहती है और वो बिना डरे इस बात को स्वीकारती है कि ‘मैंने जो किया वो गलत नहीं है| लेकिन ये जिस जगह हुआ शायद वो गलत था|’

इस तरह लस्ट स्टोरी समाज के अलग-अलग तबके में आधी आबादी के उस आधे किस्से को बयाँ करती है जिसे हमेशा चरित्रवान और चरित्रहीन के दायरें में समेटा गया है| या यों कहें कि ‘लस्ट स्टोरी’ औरतों की अनकही हसरतें खोलती है| ये एक ज़रूरी फिल्म है जिसे देखना चाहिए, क्योंकि हम लाख शारीरिक संबंधों की बात पर अपनी नज़रें झुकाकर संस्कारी बनने का ढोंग करें, लेकिन सच तो यही है कि इस शर्म के चलते ही आज हम जनसंख्या फिस्फोट के दौर में जी रहे हैं| ऐसे में आज जब हम महिला से जुड़े मुद्दों पर बात और काम करने की सोच रखते हैं तो ज़रूरी है कि हम यौनिकता के मुद्दे पर भी खुलकर बात करें, क्योंकि अगर हम महिला हिंसा का विश्लेष्ण करें तो यही पायेंगें कि हर दूसरे में मुद्दा उनकी यौनिकता होती है, जिसपर हम खुलकर बोलते नहीं है लेकिन इसपर लोगों की प्रतिक्रिया का नमूना ज़रूर देखते है| इसलिए एकबार फिर कहूंगी ज़रा खुले दिमाग से इस फिल्म को देखें और समझें|

Also read in English: Lust Stories: The Space Between Silence, Uncertainty And Conversations


तस्वीर साभार : filmcompanion

संबंधित लेख

Skip to content