समाजकानून और नीति मानव अधिकारों के रूप में ‘यौन अधिकार’

मानव अधिकारों के रूप में ‘यौन अधिकार’

नौ नियमों ने यौन अधिकारों और यौन स्वास्थ्य के समर्थक अन्तर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय मानव अधिकार कानून के मौजूदा निकाय के विकास में विशेष भूमिका निभाई है|

हम अक्सर अपने बातों-विचारों में दुनियाभर की बातें शामिल करते हैं लेकिन जब बात अपनी चाहतों पर आती है तो उसे हम खुलेतौर पर स्वीकारने से कतराते हैं| यों तो इसकी कई वजहें हो सकती हैं, पर मूल वजह है – इस चलन का हमारी तथाकथित संस्कृति का हिस्सा न होना| नतीजतन आमतौर पर हम यौनिकता को अपने मानव अधिकार के रूप में नहीं देख पाते हैं| पर बदलते समय के साथ ज़रूरी है कि हम अपनी समझ को थोड़ा और विकसित करें और अपने अधिकारों के दायरों को भी समझें|

एक व्यवस्थित और स्वस्थ समाज के लिए कानून ज़रूरी होते हैं, क्योंकि वे समाज के नियमों को निर्धारित करते हैं| वे नियम जो समाज में इंसानों के अनुकूल व्यवस्था बनाने और किसी भी तरह की हिंसा व अव्यवस्था से समाज को बचाने में सहायक होते हैं| इसी तर्ज पर, ये कानून हमारी यौन-स्वास्थ्य संबंधी नीतियों, कार्यक्रमों और सेवाओं के कार्यान्वयन को एक ढांचा भी देते हैं| ये मानव अधिकारों की गारंटी दे सकते हैं, साथ ही, वे सीमाएं भी निर्धारित कर सकते हैं|

अगर हम बात करें मानव अधिकारों की हमारे यौन स्वास्थ्य के संदर्भ में तो, इनके मानकों के साथ कानूनों के तालमेल से कई क्षेत्रों और आबादियों में यौन स्वास्थ्य को बढ़ावा दिया जा सकता है| उदाहरण के लिए, अगर यौनिकता की उद्देश्यपरक और व्यापक जानकारी का प्रसार करने वाले कानूनों को सभी के लिए लागू किया जाए तो लोगों को यह जानकारी होगी कि क्या उनके यौन स्वास्थ्य का संरक्षण या नुकसान करता है|  इसमें यह भी शामिल होगा कि लोग ज़रूरत पड़ने पर, अधिक जानकारी, परामर्श और उपचार देने के लिए कहाँ और कैसे पहुंच सकते हैं| दूसरी तरफ, जो कानून महिलाओं और किशोरों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के इस्तेमाल में बाधक हैं – उदाहरण के लिए, सेवाओं के लिए तीसरे पक्ष को अनुमति की ज़रूरत और ऐसे कानून जो सहमति से किये गये किसी तरह के यौन व्यवहार को अपराध मानते हैं और लोगों को अपनी ज़रूरत के अनुसार जानकारी लेने या सेवाओं का इस्तेमाल करने में कठिनाई पेश कर सकते हैं, जिन्हें हासिल करना उनका अधिकार है|

और पढ़ें : क्या है ‘यौनिकता’ और इसकी खासियत ? – आइये जाने

राज्यों की जिम्मेदारी है कि वे यौन स्वास्थ्य पर विपरीत असर डालने वाले अपने कानूनों और नियमों को मानव अधिकार कानूनों और मानकों के अनुरूप बनाएं| इसके तहत राज्य के लिए यौन स्वास्थ्य संबंधी जानकारी और सेवाओं के इस्तेमाल में बाधाओं को दूर करने और यौन स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाले कानूनों और नियमों को स्थापित करने जैसे सभी काम शामिल हैं| गौरतलब है कि राज्य के लिए निर्धारित ये काम विश्व स्वास्थ्य सभा के अनुरूप है,जो साल 2004 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की अपनाई गयी वैश्विक प्रजनन स्वास्थ्य रणनीति में शामिल है|   

जहाँ तक प्रजनन और यौनिकता के कई पहलुओं के जुड़े होने का सवाल है, यह कुछ प्रजनन अधिकारों का यौन अधिकारों के रूप में भी नामकरण करने और उन मुद्दों पर कुछ मानव अधिकार सिद्धांतों को आमरूप से लागू करने में झलकता है| उदाहरण के लिए, गर्भ को बनाये रखने या समाप्त करने के फैसले में| इसे किसी महिला के निर्णय करने की क्षमता के एक पहलू के रूप में देखा जा सकता है|  इसके तहत वह फैसला करती है कि यौन गतिविधि को माता-पिता बनने के फैसले से जोड़ें या अलग रखें| या फिर वह इसमें अन्य अधिकारों के साथ स्वास्थ्य, निजता (प्राइवेसी) और बिना किसी भेदभाव जीने के अधिकार का भी इस्तेमाल करती है|

कानून हमारी यौन-स्वास्थ्य संबंधी नीतियों, कार्यक्रमों और सेवाओं के कार्यान्वयन को एक ढांचा भी देते हैं|

अब चर्चा करते हैं उन नौ प्रमुख नियमों पर जो यौन अधिकारों के दावों के लिए प्रासंगिक मानव अधिकार मानकों और कानून के विकास और उनके इस्तेमाल के बारे में मार्गदर्शन करते हैं|

1- मानव अधिकार सार्वभौमिक, अपरिहार्य, अविभाज्य, परस्पर आश्रित और परस्पर संबंधित हैं| वे सार्वभौमिक हैं, क्योंकि हर इंसान समान अधिकारों के साथ पैदा होता है और समान अधिकार रखता  है|

2- मानव अधिकारों के अंतर्गत गैर-भेदभाव को लागू करने के लिए एक निहित मार्गदर्शक सिद्धांत और राज्यों पर किसी भेदभाव के बिना काम करने और सभी व्यक्तियों को समानता तक ले जाने के लिए सकारात्मक रूप से कदम उठाने का एक ख़ास दायित्व है|

3- गैर-भेदभाव के सिद्धांत का यौनिकता, यौन स्वास्थ्य और मानव अधिकारों से गहरा संबंध है| व्यक्तियों और समूहों के बीच असमानता, खराब यौन स्वास्थ्य सहित और खराब स्वास्थ्य के बोझ का एक बड़ा कारण है|

4- स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था में शामिल कानून, नीतियाँ, कार्यक्रम और पद्धतियां भी भेदभाव और स्वास्थ्य पर उल्लेखनीय असर डालने वाले अन्य मानव अधिकार उल्लंघनों के स्रोत हो सकते हैं|

5- भेदभाव से निपटने का राज्य का दायित्व, राष्ट्रीय क़ानूनी के दायरे से आगे जाता है और इसमें भेदभाव को समाप्त करने और समानता की स्थिति लाने के लिए सार्थक कार्यवाही करने की बाध्यता भी शामिल होती है|

6- मानव अधिकार के मानकों से यह साफ़ है कि राज्यों के तीन तरह के दायित्व होते हैं – अधिकारों का सम्मान करना, उनका संरक्षण करना और उनकी पूर्ति करना| यौन स्वास्थ्य के संदर्भ में अधिकारों का सम्मान करने का एक उदाहरण, कानूनों और ऐसे अन्य उपाय अपनाना हो सकता है, ताकि वह सुनिश्चित हो सके कि राज्य के प्रतिनिधि के रूप में पुलिस ऐसे इंसानों को परेशान या उनका शोषण न करें जो जेंडर के अनुकूल कपड़े न पहने या व्यवहार न करें|

7- यथोचित उपाय की अवधारणा के अंतर्गत राज्य के दायित्व बताये गये हैं कि – वह अधिकारों का सम्मान, रक्षा और पूर्ति करें| साथ ही राज्य, अधिकार पाने वाले लोगों के कर्तव्यों के लिए समीक्षा के मानक की भूमिका भी निभाता  है, ताकि आमतौर पर अधिकार सुनिश्चित हो सकें|

8- वहीं, अधिकारों की निरंतर पूर्ति के नियम में कहा गया है कि यौनिकता और यौन स्वास्थ्य से संबंधित अधिकारों सहित, उन अधिकारों को पूरी तरह प्रदान करने की दिशा में अपने उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम उपयोग करते हुए राज्य के मानव अधिकार दायित्वों को पूरा करने की दिशा में यथासंभव स्पष्ट ईमानदार, ठोस और लक्षित कदम उठाए जाए|

9- अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के अनुसार, 18 साल से कम आयु के लोग सभी मानव अधिकारों के हकदार हैं, लेकिन जब वे 18 वर्ष के हो जाते हैं तो युवाओं के प्रति राज्यों के विशेष क़ानूनी दायित्व बदल जाते हैं|  

और पढ़ें : ‘यौनिकता, जेंडर और अधिकार’ पर एक प्रभावी क्रिया  

इसतरह मानव अधिकार कानून समय के साथ होने वाले बदलावों को अपनाने वाला कानून है और यही इसकी खासियत है| इसका मुख्य उद्देश्य मानवाधिकारों को परिभाषित कर उन्हें सुरक्षित करना है | साथ ही, यह सभी अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों का मार्गदर्शन भी करते हैं| ऊपर बताये गये कार्यान्वयन और व्याख्या के नौ नियमों ने यौन अधिकारों और यौन स्वास्थ्य के समर्थक अन्तर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय मानव अधिकार कानून के मौजूदा निकाय के विकास में विशेष भूमिका निभाई है और जिन्हें समझना, स्वीकारना, लागू करना और इनका विस्तार करना बेहतर भविष्य की ज़रूरत है|


यह लेख क्रिया संस्था के वार्षिक पत्रिका यौनिकता एवं अधिकार (2006 एवं 2017) से प्रेरित है| इसका मूल लेख पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें|

अधिक जानकारी के लिए – फेसबुक: CREA | Instagram: @think.crea | Twitter: @ThinkCREA

तस्वीर साभार : uninoticias

Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content